रहस्यमय हिंदी कहानी: वर्च्युअल डॉटर (भाग 2)

महावीर सांगलीकर

हिंदी कहानी: वर्च्युअल डॉटर

वर्च्युअल डॉटर इस रहस्यमय हिंदी कहानी का यह दूसरा भाग है. अगर आपने पहला भाग पढ़ा नहीं है, तो वह पढने के बाद ही यह दूसरा भाग पढिये. पहला भाग पढ़ने के लिए रहस्यमय हिंदी कहानी : वर्च्युअल डॉटर इस लिंक पर जाइये.

लेकिन शाम को सात बजे आने का कहने वाली अस्मिता रात के दस बजे घर वापस आई. उसके हाथ में एक पर्स और एक किताब थी. वह थकी हुई लग रही थी.
पाटील साहब ने उससे पूछा, “क्या हुआ बेटी?”
“बाबा, आज बहुत दौड़भाग हुई मेरी. एक चोर का पीछा करके पकड़ा. मुझे बहुत थकान हो गई है. मैं अब सोने जा रही हूं. हम सुबह बात करेंगे”
कहकर वह बेडरूम की ओर चली गई.

दूसरे दिन सुबह आठ बजे अस्मिता को जगाने के लिए रजनी मॅडम बेडरूम में गयी तो वह वहां नहीं थी. उन्होंने सोचा, शायद वह बाथरूम में हो, पर वह वहां भी नहीं थी. मॅडम ने साहब को यह बात बतायी.

वह बिना बताए कहां चली गई?

पाटिल साहब को अब कई तरह की शंकाएं होने लगीं. उनके पास अस्मिता का मोबाइल फोन नंबर था. उन्होंने उसे फोन मिलाया.
उधर से आवाज आई, “धिस नंबर डज नॉट एक्सिस्ट”

उन्होंने अपना लॅपटॉप चालू किया. अपना फेसबुक अकाउंट खोला. कल की वह अस्मिता पाटिल उन्हें कहीं नहीं दिखी.
उन्होंने संग्राम और रणजीत के फेसबुक प्रोफाइल्स देखे. वहां भी अस्मिता का कोई अस्तित्व नहीं था.
यह क्या मामला है?

उन्होंने तुरंत संग्राम को फोन लगाया.
“अरे, कल मैंने तुमसे अस्मिता पाटिल के बारे में पूछा था…”
“अस्मिता पाटिल? कौन अस्मिता पाटिल? और कल हमने कहां बात की?” संग्राम ने कहा.
पाटिल साहब ने तुरंत फोन कट कर दिया.

पाटिल साहब ने फोन काट दिया. फिर पुलिस विभाग में अपने एक परिचित इंस्पेक्टर को फोन लगाया.
“बोलिए पाटिल साहब! आज बहुत दिनों बाद हमारी याद आयी?” उधर से आवाज आयी.
“कल ही तो मैंने आपको फोन किया था…”
“कल? नहीं… कल आपने मुझे फोन नहीं किया था….”
“ठीक है, मुझे एक जानकारी चाहिए थी… कमिश्नर ऑफिस में या आपके विभाग में अस्मिता पाटिल नाम की कोई सब-इंस्पेक्टर है क्या?”
“नहीं… ऐसा कोई मेरी जानकारी में तो नहीं है.”
पाटिल साहब ने फोन काट दिया.

फिर पाटिल साहब ने पेन ड्राइव लिया और तुरंत अपनी सोसायटी के गेट पर गए. वॉचमन से पूछा, “कल दोपहर दो बार और रात दस बजे एक अनजान लड़की हमारे घर आयी थी. आज सुबह या जल्दी वह वापस गयी. क्या उसे आते और जाते देखा?”
“नहीं… आपने बताए समय पर ऐसी कोई अनजान लड़की मैंने नहीं देखी.”
“ठीक है, लेकिन मुझे कल दोपहर डेढ़ बजे से आज सुबह आठ बजे तक का सीसीटीवी फुटेज देखना है.”

उन्होंने वह फुटेज अपनी पेन ड्राइव में डाउनलोड किया. फिर घर आकर अपने लॅपटॉप पर वह फुटेज आराम से चेक करने लगे. कल दोपहर डेढ़ बजे से दोपहर ढाई बजे तक, साढ़े तीन बजे से पांच बजे तक, रात साढ़े नौ बजे से साढ़े दस बजे तक का फुटेज उन्होंने पूरी तरह से देखा. लेकिन उसमें कहीं भी अस्मिता आती या जाती नहीं दिखी.

बाकी के फुटेज में भी अस्मिता नहीं दिखेगी इसका उन्हें यकीन हो गया, फिर भी उन्होंने रात साढ़े दस बजे से सुबह आठ बजे तक का फुटेज फास्ट फॉरवर्ड कर के देखा. वहां भी अस्मिता नहीं दिखी.

उन्हें कल अस्मिता द्वारा खींची गई सेल्फी याद आयी. उन्होंने तुरंत अपना व्हाट्सएप खोला. अस्मिता ने भेजी हुई सेल्फी गायब थी!

कल उस लडकी ने तुम्हे भी सेल्फीज भेजी थी क्या? पाटिल साहब ने रजनी मॅडम से पूछा. मॅडम ने हां कहा.
“चेक करो, सेल्फीज है या गायब हो गयी है?”
रजनी मैडम के व्हाट्स से भी सेल्फीज गायब थी.

“भ्रम! केवल भ्रम…” पाटिल साहब ने निष्कर्ष निकाला. लेकिन उन्हें शंका थी, एक ही भ्रम एक ही समय में दो लोगों को कैसे हो सकता है?

दोपहर में पाटिल साहब ऑफिस गए. वे ऑफिस पहुंचे न पहुंचे, तब तक मॅडम का फोन आ गया, “अहो, आप तुरंत घर आइए.” आवाज डरी हुई थी.
“अब क्या हुआ? वह वापस आई क्या?”
“नहीं! लेकिन मुझे डर लग रहा है. एक अजीब बात हुई है…”
“क्या हुआ?”
“आप घर आइए, बताती हूं.”

हिंदी कहानी: वर्च्युअल डॉटर

पाटिल साहब थोड़ी ही देर में घर आ गए. मॅडम का भयभीत चेहरा देखकर बोले, “क्या हुआ?”
“कल दोपहर उसने फ्रिज में से एक चॉकलेट लिया था. अभी-अभी मुझे ध्यान आया, फ्रिज में एक चॉकलेट कम है. वह लड़की अगर भ्रम थी, तो चॉकलेट कैसे कम हो सकता है?”

पाटिल साहब सोच में पड़ गए… फिर बोले, “वह चॉकलेट तुमने ही खाया होगा. लेकिन तुम्हें भ्रम हुआ होगा कि उसने खाया.”
“नहीं, उसने नहीं खाया, वह चॉकलेट उसने अपने पर्स में रखा था.”
“वह भी एक भ्रम होगा.”
“नहीं! उसका वह पर्स बेडरूम में है… चलो दिखाती हूं.”

मॅडम बेडरूम की ओर गयी. उनके पीछे-पीछे पाटिल साहब भी गए. वहां कोने में एक पर्स था. वही पर्स, जो कल पाटिल साहब ने खुद देखा था, अस्मिता के हाथ में. उन्होंने वह पर्स उठाया और खोला. अंदर चॉकलेट का खाली पैकेट था!

पाटिल साहब को बेड पर एक किताब भी दिखी. उन्होंने उसे हाथ में लिया. किताब का टाइटल था, “Some Experiments with Virtual Realities”

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