चित्तरंजन चव्हाण
मैं जब कॉलेज में पढ़ रहा था, तब मेरी क्लास में एक सुंदर लड़की थी. पढ़ाई में भी वह अच्छी थी. वैसे मैं भी कुछ कम नहीं था. मेरी उससे अच्छी दोस्ती हो गई. आगे मेरी तरफ से यह दोस्ती सिर्फ दोस्ती नहीं रह गई, मैं उसे चाहने लगा. लेकिन यह बात उसे कहने की हिम्मत मैं न जुटा सका.
फिर एक शनिवार को मैंने उससे पूछा, “कल क्या कर रही हो?”
“क्यों, क्या बात है?” उसने मेरी नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा…
मैंने डरते-डरते कहा, “कल मेरे साथ डिनर के लिए आ सकती हो क्या?”
उसने कहा, “मैं रात को खाना नहीं खाती.”
“क्यों?”
“हम लोगों का सूर्यास्त से पहले खाना खाने का रिवाज है.”
“अच्छा, फिर शाम को जाएंगे खाना खाने?”
“नहीं, कल शाम को मुझे ट्यूशन के लिए जाना है.”
मैं थोड़ा नाराज हो गया. फिर भी हिम्मत न हारते हुए मैंने पूछा, “ठीक है, लंच के लिए तो जा सकते हैं?”
“नहीं बाबा,” उसने कहा, “कल दोपहर हमारे मंदिर में एक प्रोग्राम है, मुझे वहां जाना है…”
“ठीक है, अगले रविवार को जाएंगे?”
“अगले रविवार को मुझे हमारी दुकान संभालनी है… भाई और पिताजी किसी काम से मुंबई जा रहे हैं, तो दुकान मुझे ही संभालनी होगी.”
इस प्रकार उसके साथ खाना खाने की और नजदीकियां बढ़ाने की मेरी पहली कोशिश कामयाब नहीं हो सकी.
फिर एक दिन मैंने उससे कहा, “चलो, कल हम कॉलेज से छुट्टी लेते हैं, और लंच के लिए जाते हैं.”
उसने मेरी ओर विचित्र नजरों से देखते हुए कहा, “मैं कॉलेज में पढ़ने के लिए आती हूं, कॉलेज के नाम पर बाहर घूमने के लिए नहीं.” और वह तुरंत क्लास की ओर चली गई.
फिर मुझे एक और मौका मिला. वॅलेन्टाइन्स’स डे पर मैं उसके लिए एक गुलाब का फूल लेकर गया. लेकिन उसने वह लेने से इन्कार किया. उसने कहा, ‘फूलों में भी जान होती है. फूल पेड़ पर ही अच्छे लगते हैं. फूल तोड़ने नहीं चाहिए.

फिर एक दिन मैं प्रेमचंद की कहानियों की एक पुस्तक लेकर क्लास में गया. वह किताब उसे दिख जाए, इस प्रकार उसके सामने से गुजरा. उसने तब कुछ कहा नहीं. थोड़ी देर बाद मैंने ही उससे कहा, “तुमने प्रेमचंद की कहानियों की यह पुस्तक पढ़ी है क्या?”
उसने कहा, “मैंने उनकी सारी कहानियां पढ़ी हैं… बहुत अच्छी हैं. लेकिन आजकल मैं अंग्रेजी कहानियां पढ़ रही हूं…”
फिर कुछ दिन विचार करने के बाद मैंने एक ऑस्ट्रेलियन लेखिका की अंग्रेजी कहानियों की पुस्तक लेकर कॉलेज गया. उसने वह पुस्तक देखी और मुझसे कहा, “इस लेखिका के बारे में मैंने सुना है, लेकिन उसकी कहानियां मैंने नहीं पढ़ी हैं.”
मैंने तुरंत कहा, “चलो, रख लो यह किताब तुम्हारे पास, पढ़कर वापस दे देना.”
उसने वह किताब लेकर अपनी बैग में रख ली.
मैंने कहा, “कब दोगी वापस?”
उसने कहा, “परसों मिलेगी.”
“इतनी जल्दी…?”
“हां… मैं फास्ट रीडर हूं “
उसने मुझसे वह किताब पढ़ने के लिए ली, इससे मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन दूसरी ओर मेरा दिल धड़क रहा था… मैंने उस किताब में एक चिट्ठी लिखकर रखी थी. उसमें मैंने अपने प्यार का इजहार किया था… अब क्या होगा…
अगले दिन क्लास में वह मुझे घूर-घूर कर देख रही थी और मैं नजरें चुरा रहा था. उस दिन वह मुझसे कुछ बोले बिना ही चली गई.
अगले दिन उसने वह किताब वापस कर दी, लेकिन वह मौन थी.
कॉलेज से घर आने के बाद मैंने देखा कि मेरी वह चिट्ठी उस किताब में जैसे की तैसी थी. मैंने वह चिट्ठी खोली, तो उसमें उस लड़की ने लाल स्याही से कई जगह व्याकरण की गलतियां निकाली थीं. नीचे रिमार्क लिखा था कि हॅन्डराइटिंग ठीक नहीं है, उसे सुधारने की आवश्यकता है. आगे 10 में से सिर्फ 2 मार्क दिए थे!
मुझे हंसी भी आई और उस पर गुस्सा भी. क्या यह मेरी टीचरनी है?
अब तक मैं जान चुका था कि यह लड़की मेरे हाथ लगने वाली नहीं है. इसलिए मैंने उसे इग्नोर करना शुरू किया और अपनी पढ़ाई पर फोकस किया. मैंने अपना अक्षर भी सुधारने के लिए प्रयत्न किए, जो सुधरे भी. इन सब बातों का फायदा यह हुआ कि मैं एग्जाम में अच्छी तरह पास हो गया.
इस प्रकार मेरी यह इकतरफा प्रेमकहानी समाप्त हो गयी!
एक अच्छी बात यह हो गयी की एकतरफा प्यार के दौरान मैंने जैन फिलॉसॉफी की कई सारी किताबें पढ़ ली. यह फिलॉसॉफी मुझे अनोखी और बेहतर लगी. कुछ बातों को मैंने अपने व्यवहार में अपनाया भी. जैसे कि की का दिल नहीं दुखाना, विवाद नहीं करना , मन में अच्छे भाव रखना और परोपकार करना. आगे चलकर मुझे मेरे जीवन में ढेर सारे फायदे हुए….. और मैं एक तनावरहित, सुखी और संपन्न जीवन जीने लगा.