बैखौफ होने के लिए सच्चे किरदार का होना ज़रूरी है

नितिन जैन (पलवल, हरियाणा)

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बैखौफ होना कोई नारा नहीं है, कोई अभिनय नहीं है और न ही ऊंची आवाज़ में बोल देना ही बहादुरी है. बैखौफ वही होता है जिसके भीतर का इंसान साफ़ होता है. जिसके मन में छल नहीं, जिसकी नीयत में मिलावट नहीं और जिसके आचरण में दोहरापन नहीं. डर असल में बाहर से नहीं आता, डर भीतर से पैदा होता है, और वही डर इंसान को झुकाता है, बिकने पर मजबूर करता है और चुप करा देता है. जिसके पास छुपाने को कुछ नहीं होता, वही निडर होता है.

सच्चा किरदार वह होता है जो अकेले में भी वही रहता है जो भीड़ में दिखाई देता है. जो मंच पर कुछ और और पर्दे के पीछे कुछ और नहीं बनता. जो लाभ-हानि देखकर सच नहीं बदलता. ऐसा इंसान आलोचना से नहीं डरता, क्योंकि उसे पता होता है कि सच अस्थायी रूप से दब सकता है, पर मिट नहीं सकता. डर तो उन्हें लगता है जिनकी ज़मीन खोखली होती है, जिनकी नींव झूठ पर टिकी होती है.

आज समाज में बैखौफ दिखने वाले बहुत मिल जाएंगे, लेकिन सच्चे किरदार वाले कम हैं. कुछ लोग गाली देकर खुद को निर्भीक समझते हैं, कुछ लोग दूसरों को गिराकर खुद को साहसी मान लेते हैं, जबकि सच्ची निडरता तो संयम, सत्य और स्पष्टता से आती है. सच्चा इंसान शांत भी हो सकता है और कठोर भी, लेकिन उसका उद्देश्य हमेशा सही होता है.

जब इंसान का जीवन पारदर्शी होता है, जब उसके फैसले स्वार्थ से नहीं बल्कि विवेक से निकलते हैं, तब किसी पद, किसी भीड़, किसी धमकी का असर उस पर नहीं पड़ता. ऐसे लोग अकेले खड़े होने से नहीं घबराते, क्योंकि उन्हें अपने सत्य पर भरोसा होता है. वे जानते हैं कि भीड़ हमेशा सही नहीं होती, और इतिहास गवाह है कि सच अक्सर अल्पसंख्यक में ही खड़ा मिलता है.

बैखौफ बनने के लिए न तो हथियार चाहिए, न धन, न समर्थन. केवल एक चीज़ चाहिए—सच्चा किरदार. अगर चरित्र सही है तो शब्द अपने आप मजबूत हो जाते हैं, आँखों में अपने आप चमक आ जाती है और कदम अपने आप डगमगाते नहीं. और अगर चरित्र ही कमजोर है तो सबसे ऊँची कुर्सी भी डर को नहीं हटा सकती.

इसलिए अगर सच में बैखौफ बनना है तो सबसे पहले अपने भीतर झाँकिए. अपने समझौतों, अपने मौन और अपनी सुविधाओं से सवाल कीजिए. क्योंकि बाहर की लड़ाई से पहले भीतर की ईमानदारी जीतना ज़रूरी है. बैखौफ वही होता है जो खुद की नज़रों में गिरा न हो.

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नितिन जैन (पलवल, हरियाणा) एक सुधारवादी और निडर लेखक है.

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