
चित्तरंजन चव्हाण
अंधभक्ति में किसी व्यक्ति को इतना भी महान मत बना दो कि तुम्हारा धर्म और देश उसके आगे छोटे पड़ जाएं!
मनुष्य एक सोचने-समझने वाला प्राणी है. उसका सबसे बड़ा गुण यही है कि वह विवेक (बुद्धि) का उपयोग करके सही और गलत में अंतर कर सकता है. लेकिन जब कोई अपनी सोच, समझ और विवेक को त्यागकर किसी व्यक्ति के पीछे आंखे मूंदकर चलने लगे तब वही विवेकहीनता अंधभक्ति कहलाती है. और यही अंधभक्ति न केवल व्यक्ति को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि पूरे समाज, धर्म और देश को भी खतरे में डाल देती है.
अंधभक्ति क्या होती है?
अंधभक्ति का अर्थ है बिना किसी तर्क, प्रश्न या विश्लेषण के किसी व्यक्ति विशेष को आदर्श मानना और उसके हर कहे को अंतिम सत्य मान लेना. ऐसे में चाहे वह व्यक्ति सही हो या गलत, उसके अनुयायी केवल उसकी प्रशंसा करते हैं. वे न तो आलोचना सह पाते हैं, और न ही सच्चाई को स्वीकार करते हैं. यही अंधभक्ति की जड़ है.
उदाहरण: अगर कोई नेता देश की जनता से झूठ बोले, लेकिन उसके समर्थक यह मान लें कि “जो उन्होंने कहा है, वही सही है,” तो यह अंधभक्ति है. अगर कोई धार्मिक गुरु ग़लत काम करे, और लोग कहें “गुरुजी कुछ भी करें, उसमें कुछ न कुछ भलाई ही होगी,” तो यह भी अंधभक्ति है.
लोग अंधभक्त क्यों बन जाते हैं?
अंधभक्त बनने के पीछे कई कारण है. एक कारण है डर. डर के मारे कई लोग अंधभक्त बन जाते हैं और अपने आप को सुरक्षित महसूस करते है. माने या न माने, यह सबसे बड़ा कारण है. किसी तानाशाह का विरोध करने के लिए हिम्मत की जरुरत होती है. जिनके पास यह नहीं होती उनके लिए अंधभक्ति करने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं होता.
कुछ औसत बुद्धि के लोगों को अच्छे-बुरे की समज नहीं होती, और ना ही उन्हें अच्छाई से कोई लेना देना होता है. ऐसे लोग हिंसा, नफरत, भेदभाव आदि की ओर सहजता से आकर्षित हो जाते है. कोई नेता अगर समाज में नफरत फैलाने का काम करता है, तो ऐसे लोग उसके अंधभक्त बन जाते हैं.
कुछ नेता अपनी भाषणबाजी से लोगों को सम्मोहित कर देते है. कमजोर मन के लोग तुरंत ही सम्मोहित हो जाते हैं और अंधभक्तों की टोली में शामिल हो जाते हैं
धर्म और देश व्यक्ति से बड़े क्यों हैं?
धर्म कोई इंसान नहीं है, यह विचार है. यह हमें सत्य, अहिंसा, करुणा, माफ़ी, और समभाव सिखाता है. यह एक नियम है जो समाज को जोड़कर रखता है. इसी तरह, देश कोई एक व्यक्ति का नहीं होता. यह उन करोड़ों लोगों की भावना और मेहनत का परिणाम होता है जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर हमें आज़ादी दिलाई.
तो क्या एक व्यक्ति, चाहे वह कितना भी लोकप्रिय हो, इनसे बड़ा हो सकता है? बिलकुल नहीं.
जब कोई व्यक्ति हमारे धर्म की शिक्षाओं के खिलाफ जाकर हिंसा फैलाए या समाज में नफरत पैदा करे, और फिर भी लोग उसका समर्थन करें, तब यह न केवल धर्म का अपमान है, बल्कि देश की एकता के लिए भी ख़तरा है.
अंधभक्ति क्या होती है?

इतिहास हमें क्या सिखाता है?
इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां अंधभक्ति ने समाज और सभ्यता को बर्बाद कर दिया.
हिटलर को जर्मनी में भगवान जैसा माना जाने लगा था. लोगों ने आंखे बंद करके उसके हर फैसले को सही माना. उसका नतीजा क्या हुआ? लाखों निर्दोष यहूदियों की हत्या और एक भयानक विश्वयुद्ध.
भारत में भी कई बार जब नेताओं या बाबाओं को भगवान जैसा दर्जा दिया गया, तब उन्होंने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया. कुछ धर्मगुरु बलात्कार, हत्या और धोखाधड़ी जैसे अपराधों में पकड़े गए, लेकिन फिर भी उनके भक्तों ने उन्हें “दोषी” मानने से इनकार कर दिया.
क्या यह धर्म है? क्या यह देशभक्ति है? नहीं, यह केवल और केवल अंधभक्ति है.
सच्ची भक्ति में विवेक होता है
सच्चा भक्त वह होता है जो अपने गुरु, नेता या आदर्श की अच्छाइयों से प्रेरणा ले, लेकिन अगर वह रास्ता भटक जाए तो उसे सच का आइना दिखाए. सच्ची भक्ति में तर्क होता है, सोच होती है, और सच्चाई को स्वीकार करने की शक्ति होती है.
अगर कोई माता-पिता अपने बच्चे को गलती करते हुए देखें, तो वे उसे डांटते हैं, सुधारते हैं. वे आंखे बंद करके उसका समर्थन नहीं करते. उसी तरह, अगर कोई व्यक्ति जिसे हम मानते हैं, वह गलती करता है, तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसका समर्थन न करें, बल्कि उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश करें.
किसी राजनेता या साधु का बार बार नाम लेने के बजाय, उनकी अंधभक्ति करने के बजाय भगवन का नाम लीजिये, भगवान की भक्ति कीजिये, इससे आपका और आपके भला होगा!
आज के समय में क्यों जरूरी है सचेत रहना?
आज सोशल मीडिया, टीवी और भाषणों के ज़रिए बहुत सारे प्रभावशाली लोग हमारे दिल और दिमाग पर असर डालते हैं. वे अपने हित में हमारी भावनाओं का उपयोग करते हैं — धर्म, जाति, भाषा या देशभक्ति के नाम पर.
हमें सजग रहना होगा कि कहीं हम किसी व्यक्ति विशेष को इतना ऊँचा न बना दें कि हमारी सोच, धर्म और देश उस व्यक्ति के नीचे दब जाएं.
व्यक्ति नहीं, विचार पूजनीय है
किसी व्यक्ति को महान मानना बुरी बात नहीं है. लेकिन उसे इतना महान मान लेना कि उसके आगे धर्म और देश छोटे लगने लगें — यह बहुत बड़ी भूल है.
धर्म हमें विवेक सिखाता है, अंधभक्ति नहीं.
देश हमें सोचने की आज़ादी देता है, गुलामी नहीं.
व्यक्ति तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन मूल्य और आदर्श शाश्वत होते हैं.
इसलिए अंधभक्ति से नहीं, विवेक से सोचें. सच्चे धर्म और सच्चे देशभक्त बनें.
अंधभक्ति क्या होती है?
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